Friday 16 June 2023

Meri Mehaboob

 

1968 - PEC Chandigarh

"मुसाफिर के रास्ते बदलते रहे
मुक्क्दर में चलना था चलते रहे / " Basheer Badra


मैं मुसाफिर हूँ मेरे रास्ते बदलते रहे

मेरे मुक्क्दर में चलना था में चलता रहा /

मेरा प्यार, वयवहार, खाना, पीना, समय तथा उम्र के साथ 

किराये के घर की तरह बदलता रहा//

जीत और हार उसके हाथ में थी, 

इससे पहले की मैं समझता, समय चलता रहा /

उसके बताये रास्ते में, कहीं प्यार मिला कही कीमत भी नहीं

कुछ यादों को साथ लिए मैं तो बस चलता रहा //

कुछ भी कमी है तो,  तुम ना भूलो मुझको 

आदमी हूँ माफ़ी का हकदार समझ लो मुझको /

शायद मेरा दिमाग मेरी आँख के नजारों से 

कान की आवाजॉ से  बहुत दूर था  लेकिन, 

मेरे दिल को भी तुझे समझने में बहुत देर लगी //

समय का कया है चलता है रुकता ही नहीं 

देखते देखते वक़्त निकल जाता है /

और मेरी यादें मेरा बीता हुआ कल 

मुझे याद बहुत आता है /

शायद मैं तुम्हें फिर से मिल पाता और 

कहता मैं तुम्हे याद और प्यार बहुत करता हूँ //

मेरी मेहबूब जिंदगी के इस आखरी लम्हे में 

तेरी यादों से लिपटे मैं तुम्हे याद बहुत करता हूँ

और सोचता हूँ की शायद तुम मेहरबान हो कर 

अपनी हिम्मत को हिम्मत देकर 

मेरे नाम को पुकारोगी और मुझे एक बार फ़ोन से सुहागो गी 

और मैं फिर कहूंगा की मैं तुम्हे याद बहुत करता हूँ //

होगा यही मेरा अंतिम स्वर 

तुमको याद करते मैं फिर जिंदगी की अंतिम नींद में सो जाऊँगा "//


और मैं जानता हूँ की तूने मुझे जब भी देखा पीते पिलाते देखा 

और मुझे मेरे ख्यालों के कटोरों में भीगा हुआ देखा 

और मैंने जब भी तुझे देखा तेरी रूह को तरसते देखा /


I am a traveler. Time always takes me on the road and compels me to move. I moved from place to place and country to country. But I always remained with my known who loved, cared, and respected me. Nothing was in my hands. Time only changed the circumstances and as a mute spectator, I followed. I committed many mistakes and concluded nothing is in my hands. I am only a puppet in the hands of my destiny. Only memories can I take and perhaps may take rebirth with all these memories. I assure you that I remember and remember you very much.

तूने जब भी देखा मुझे, पीते पिलाते देखा 

मैंने जब भी तुझे  देखा, तेरी रूह को तरसते देखा 

मेरी मेहबूब कहीं और मिला कर मुझ से /

I am now aging and enjoying different life.

"कल भी ये मुट्ठी छोटी थी , अब भी ये मुट्ठी  छोटी है 
कल इस से शक्कर गिर जाती थी , अब दवाई गिर जाती है | 

और कुछ रोज यूँ ही बोझ  उठा लो मेरा बेटे 
चल दिए हम तो मय्यसर नहीं होने वाले | " Munnavar Rana