हर दिवस श्याम में ढल जाता है
हर तिमिर धूप में जल जाता है |
मेरे मन इस तरह ना हिम्मत हार
वक़्त कैसा भी हो बदल जाता है ||
Neeraj explains about life, democracy, philosophy. Goladas Neeraj was born in 4 Januray 1924. In 1947 he was 23 years of age. Neeraj died 19 July 2018 (aged 93 years)
नीरज
"हर रोज समन्दर ने मुझे बहकाया, लेकिन ना वहां एक भी मोती पाया /
पर शयाम हुई जाल को खींचा मैने , एक शंक ही हाथों में उभर कर आया //
हर धरम के आदेश को माना मैंने , दर्शन के हर सूत्र को छाना मैंने/
जब जान लिया सब कुछ तो ये जाना मैंने, मैं कुछ भी नहीं जाना ये जाना मैंने //"
इस सागर में कोइ ना बचा सबके सब एक छण में डूब गए (५४:३१)
नीरज
स्वपन झड़े फूल से मीत चुभे शूल से
लुट गए श्रृंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे /
कारवां गुजर गया गुब्बार देखते रहे //
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी
पाँव जब तलक उठे की जिंदगी फिसल गयी
पात पात झड़ गए की शाक शाक जल गई
चाह तो निकल सकी ना, पर उम्र निकल गयी
चाह तो न निकल सकी उम्र मगर निकल गयी /
क्या शबाब था की फूल फूल प्यार कर चूका
और हम झुकी नजर
https://www.youtube.com/watch?v=vDCLa3Q58DM
अब उजालों को सन्यास ही लेना होगा
सूर्य के बेटे अंधेरों का समर्थन कर रहे हैं / Political sarcasm (8:53)
4 May 2020
गीत जब मर जायेंगे फिर क्या यहां रह जायेगा
इक सिसकता आसुंओं का कारवां रह जाएगा |
आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे
जब ये बस्ती ना रही तू कहां रह जाएगा //
गर चिरागों की हिफाजत फिर उन्हें सौपीं गयी
रौशनी मर जाएगी खाली धुआं रह जाएगा ||
आएगा अपना बुलावा जिस घडी उस पार से
मैं कहां रह जाऊंगा और तू कहां रह जाएगा ||
जिंदगी और मौत की नीरज कहानी है यही
फुर्र हो जायेगी चिड़िया, आशियाँ रह जायेगा ||
जब चले जाएंगे हम लौट के सावन की तरह /
याद आएंगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह //
मेरे घर कोई ख़ुशी आती तो कैसे आती /
उम्र भर साथ रहा दर्द महाजन की तरह //
दाग मुज़मे है की तुझमे, ये पता तब होगा /
मौत जब आएगी कपडे लिए धोबन की तरह//
कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो /
जिंदगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह //
जिक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा /
जान लें शर्मायी क्यों गाँव की दुल्हन की तरह //
जिस में इंसान के दिल की न हो दड़कन नीरज /
शायद ही है वो अख़बार के कर्तन की तरह //
27 March 2019 Padam Shree Gopal Das Neeraj and Padam Shree Bekal Utsahi
आज मैखाने में ये कार्य सवाबी हो जाये / बिन पिए वक़्त का अंदाज़ गुलाबी हो जाये /
क्या जरूरी है मयो जामो सबु ए साकी / तू जिसे देख ले वो मस्त शराबी हो जाए // बेकल उत्साही (३;४०)
बादलों से सलाम लेता हूँ , वक़्त के हाथ थाम लेता हूँ /
मौत मर जाती है पल भर के लिए जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ // नीरज
अपनी मस्ती की शाम मत देना / दोस्तों को ये काम मत देना /
जिसको पीने की कुछ तमीज न हो उनके हाथों में जाम मत देना //
आज मैखान में ये कार्य सवाबी (पुण्य का काम) हो जाए, बिन पिए वक़्त का माहौल गुलाबी हो जाए |
क्या जरुरी है यहां जामो सबु ए साकी , तू जिस्से देख ले वो सक्श शराबी हो जाए //
मेरा धर्म है मोहब्बत मेरी नीत है भलाई /
मेरी मंज़िल एकता है, नहीं राह है पराई ||
कभी बन गया मैं हिन्दू, कभी बन गया मुसलमान
न हीं बन सका मैं इंसान, मुझे मौत क्यों ना आयी /
फटी कमीज नुचि आस्तीन, कुछ तो है, गरीब ऐसी दशा में हसीं कुछ तो है |
लिबास कीमती रख कर भी नंगा है , हमारे गाँव में मोटा महीन कुछ तो है //
https://www.youtube.com/watch?v=7CqswM_THt8 बेकल
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में / तुमको लग जाएंगी सदियां हमे भुलाने में //
ना तो पीने का सलीक़ा ना पिलाने का शवूर ऐसे ही लोग चले आये हैं मैखाने में //
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए / जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये /
आग बहती है यहां गंगा में, झेलम में भी / कोई बतलाये कहां जाकर नहाया जाए //
मेरा मकसद है ये महफ़िल रहे रोशन यूँही / खून चाहे मेरा दीपों में जलाया जाये /
मेरे दुखदर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा / मैं रहूं भूखा तो तुज़से भी ना खाया जाए //
जिस्म दो हो कर भी दिल एक हों अपने ऐसे / मेरा आसूं तेरी पलकों पर सजाया जाये //
गीत गुम सुम ग़ज़ल चुप है रुबाई है दुखी ऐसे माहौल में नीरज को बुलाया जाये //
कल रात उनको देखा था उर्दू लिबास में कोई ये कह रहा था की अगला चुनाव है // बिकल
परिवर्तन : अब न वो दर्द न वो दिल न दीवाने रहे अब न वो साज ना वो सोज़ न वो गाने रहे /
साकी तू अब भी यहां किसके लिए बैठा है अब न वो जाम न वो मय ना वो पैमाने रहे // नीरज
न सफीरे सल्तनत हूँ , ना असीर हुकमेशाही मेरा गम गमे वतन है मैं कलम का हूँ सिपाही // (१९:१९)
ये चिराग और दामन वो जमाल और चिलमन ये शरूरे मासियत है वो गरूर बेगुनाही // बिकल
ना लड़खड़ाया कभी, कभी ना बहका हूँ मुझे पिलाने में फिर तुमने क्यों कमी की है // नीरज
मैं अँधेरे में हरगिज ना रहता / मुझे धोखा दिया है रोशिनी ने // बिकल उत्साही
मेरा धर्म है मोहब्बत मेरी नीत है भलाई /
मेरी मंज़िल एकता है, नहीं राह है पराई ||
कभी बन गया में हिन्दू, कभी बन गया मुसलमान
न हीं बन सका मैं इंसान, मुझे मौत क्यों ना आयी /
6 February 2013
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए / जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये /
आग बहती है यहां गंगा में भी झेलम भी / कोई बतलाये कहां जाकर नहाया जाए //
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में / तुमको लग जाएंगी सदियां हमे भुलाने में //
19 January 2014
कोई चला तो किस लिए नज़र तू दबदबा गयी
शृंगार क्यों सेहर गया बिहार क्यों लजा गयी //
ना जनम कुछ, ना मृत्यु कुछ, बस इतनी ही तो बात है
किसी की आँख खुल गयी किसी को नींद आ गयी //
Maut ek jindgi ki karwat hai apni marji se ye nahin aati.
मौत एक जिंदगी की करवट है /
अपनी मर्जी से ये नहीं आती //
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में |
तुमको लग जाएंगी सदियां हमे भुलाने में ||
ना तो पीने का सलीका ना पिलाने का शऊर
ऐसे ही लोग चले आएं हैं मैखाने में //
जब चले जाएंगे हम लौट के सावन की तरह |
याद आएंगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह ||
मेरे घर कोई ख़ुशी आती तो कैसे आती |
उम्र भर रहा दर्द महाजन की तरह ||
दाग मुझमे है की तुझमे, ये पता तब हुआ |
मौत जब आएगी धोबन की तरह ||
जिसमे इंसान के दिल की ना हो धड़कन नीरज |
शायरी है वो अखबार की कतरन की तरह ||
हर धर्म के आदेश को माना मैंने, दर्शन के हर एक सूत्र को छाना मैंने |
जब जान लिया सब कुछ तो ये नीरज जाना मैने, मैं कुछ भी नहीं जनता ये जाना मैंने ||
अबके सावन में शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़के कुल शहर में बरसात हुई /
जिंदगी भर तो हुई गुफ्तगूं गैरों से मगर
आज तक हमसे हमारी ना मुलाक़ात हुई ||
हम तो मस्त फ़क़ीर, कोई अपना नहीं ठिकाना रे
जितना कम सामान रहेगा, उतना सफर आसान रहेगा
जब तक मस्जिद मंदिर है मुश्किल में इंसान रहेगा ||
आप मत पूछिए क्या हम पे सफर में गुजरी,
था लुटेरों का जहाँ गाँव वहां अपनी रात हुई ||
सफर ये सांस का अब खतम होने वाला है
जो जागता था मुसाफिर वो सोने वाला है ||
ना सोच तू सियेगा वो तेरी चादर भी
वो सिर्फ सुई में धागा पिरोने वाला है ||
दुखी सभी है यहां अपने अपने सुख के लिए
मेरे लिए ना कोई रोने वाला है ||
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये |
आग बहती है यहां गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाये कहां जा के नहाया जाये
मेरे दुखदर्द का तुझपर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूं भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाये ||
गीत गुमसुम है ग़ज़ल चुप है रुबाई है उदास
ऐसे माहौल में नीरज को बुलाया जाये //
मैं सोच रहा हूँ अब जो युद्ध होगा --- अब युद्ध नहीं होगा (3:44 to 8:40)
Worldwar III may take life and perks of the young people by Neeraj
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