हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया…
हकीकत रूबरू हो तो अदाकारी नहीं चलती
खुदा के सामने बन्दों की मक्कारी नहीं चलती |
तुम्हारा दबदबा खाली तुम्हारी जिंदगी तक है
किसी की कब्र के अंदर जमींदारी नहीं चलती ||
Shayari
उस सादगी पे कौन ना मर जाये अल्लाह, लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार भी नहीं /
अच्छी सूरत को सवरने की जरुरत क्या है, सादगी में भी कयामत की अदा होती है /
तुम जो आ जाते हो मस्जिद में अदा करने नमाज़, तुमको मालुम नहीं कितनो की कदा होती है /तन्हाई में फिरयाद तो कर सकता हूँ | वीराने को आबाद तो कर सकता हूँ /
जब चाहूँ तुझे मिल तो नहीं सकता लेकिन| जब चाहूँ तुझे याद तो कर सकता हूँ /
मैंने मासूम बहारों में तुझे देखा है / मैंने पुरनूर सितारों में तुझे देखा है /
मेरे मेहबूब तेरी पर्दानशीं की कसम / मैंने अश्कों की कतारों में तुझे देखा है //
आज की रात फिर नहीं होगी / ये मुलाकात फिर नहीं होगी /
ऐसे बादल तो फिर भी आएंगे ऐसी बरसात फिर नहीं होगी /
रात उनको भी हुआ ये महसूस जैसे ये रात फिर नहीं होगी /
एक नजर मुढ के देखने वाले क्या ये खैरात फिर नहीं होगी //
चांदनी रात याद आती है वो मुलाकात याद आती है
देख के उन घनेरी जुल्फों को मस्त बरसात याद आती है /
शब्बे गम की सहर नहीं होती , हो भी तो मेरे घर नहीं होती
जिंदगी तू ही मुख़्तसर हो जा , शब्बे गम मुख़्तसर नहीं होती /
https://www.youtube.com/watch?v=hrMrsoUfLp0
https://www.youtube.com/watch?v=2mhBohkmTeQ Nusrat Fateh Ali Khan ऐसे लहरा के वो रु बे रु आ गयी, धड़कने बेतहाशा तड़पने लगी
तीर ऐसा लगा दर्द ऐसा जगा, चोट दिल ने वो खाई मजा आ गया /
मेरे रश्के कमर तूने पहली नजर, जब नजर से मिलायी मजा आ गया /
"वक़्त को भी हुआ है ज़रूर किसी से इश्क़, जो वो बेचैन है इतना कि ठहरता ही नहीं।"
"आँख से दूर मग़र दिल से कहाँ जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा/"
Received from Satija FB friend on Diwali.
Lovely lines from
Mirza Ghalib.
Dedicated to all friends...
ख़ुदा की मोहब्बत को फ़ना कौन करेगा?
خُدا کی مہبت کو فنا کون کریگا؟
सभी बन्दे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा?
سبھی بندے نئک ہوں تو گناہ کون کریگا؟
ऐ ख़ुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना
اے خُدا میرے دوستوں کو سلامت رکھنا
वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा
ور نہ میری سلامتی کی دُعا کون کریگا
और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज़
اور رکھنا میرے دُشمنوں کو بہی مہفوذ
वरना मेरी तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा...!!!
ورنہ میری تیرے پاس آنے کی دُعا کون
کریگا۔۔۔۔!!!
बना के उसने मेरे संग रेत के महल /
ना जाने क्यों बारिशों को खबर कर दी //
27 March 2019 Padam Shree Gopal Das Neeraj and Padam Shree Bekal Utsahi
आप इस तरह ना चेहरे पे बिखेरे गेसू
आज मैखाने में ये कार्य सवाबी हो जाये / बिन पिए वक़्त का अंदाज़ गुलाबी हो जाये /
क्या जरूरी है मयो जामो सबु ए साकी / तू जिसे देख ले वो मस्त शराबी हो जाए // बेकल उत्साही (३;४०)
बादलों से सलाम लेता हूँ , वक़्त के हाथ थाम लेता हूँ /
मौत मर जाती है पल भर के लिए जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ // नीरज
अपनी मस्ती की शाम मत देना / दोस्तों को ये काम मत देना /
जिसको पीने की कुछ तमीज न हो उनके हाथों में जाम मत देना //
आज मैखान में ये कार्य सवाबी (पुण्य का काम) हो जाए, बिन पिए वक़्त का माहौल गुलाबी हो जाए |
क्या जरुरी है यहां जामो सबु ए साकी , तू जिस्से देख ले वो सक्श शराबी हो जाए //
मेरा धर्म है मोहब्बत मेरी नीत है भलाई /
मेरी मंज़िल एकता है, नहीं राह है पराई ||
कभी बन गया मैं हिन्दू, कभी बन गया मुसलमान
न हीं बन सका मैं इंसान, मुझे मौत क्यों ना आयी /
फटी कमीज नुचि आस्तीन, कुछ तो है, गरीब ऐसी दशा में हसीं कुछ तो है |
लिबास कीमती रख कर भी नंगा है , हमारे गाँव में मोटा महीन कुछ तो है //
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में / तुमको लग जाएंगी सदियां हमे भुलाने में //
ना तो पीने का सलीक़ा ना पिलाने का शवूर ऐसे ही लोग चले आये हैं मैखाने में //
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए / जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये /
आग बहती है यहां गंगा में, झेलम में भी / कोई बतलाये कहां जाकर नहाया जाए //
मेरा मकसद है ये महफ़िल रहे रोशन यूँही / खून चाहे मेरा दीपों में जलाया जाये /
मेरे दुखदर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा / मैं रहूं भूखा तो तुज़से भी ना खाया जाए //
जिस्म दो हो कर भी दिल एक हों अपने ऐसे / मेरा आसूं तेरी पलकों पर सजाया जाये //
गीत गुम सुम ग़ज़ल चुप है रुबाई है दुखी ऐसे माहौल में नीरज को बुलाया जाये //
कल रात उनको देखा था उर्दू लिबास में कोई ये कह रहा था की अगला चुनाव है // बिकल
परिवर्तन : अब न वो दर्द न वो दिल न दीवाने रहे अब न वो साज ना वो सोज़ न वो गाने रहे /
साकी तू अब भी यहां किसके लिए बैठा है अब न वो जाम न वो मय ना वो पैमाने रहे // नीरज
न सफीरे सल्तनत हूँ , ना असीर हुकमेशाही मेरा गम गमे वतन है मैं कलम का हूँ सिपाही // (१९:१९)
ये चिराग और दामन वो जमाल और चिलमन ये शरूरे मासियत है वो गरूर बेगुनाही // बिकल
ना लड़खड़ाया कभी, कभी ना बहका हूँ मुझे पिलाने में फिर तुमने क्यों कमी की है // नीरज
मैं अँधेरे में हरगिज ना रहता / मुझे धोखा दिया है रोशिनी ने // बिकल उत्साही
On Unity Bikal Utsahi at Braj Kala Kendra
पतवार कागज़ी है तो पन्नी की नाव है
हैं उस नदी में जिसका हवा में बहाव है |
सुनिए जनाब मेरा ही हिन्दोस्तान है नाम
खेती मेरा असूल है फाका स्वाभाव है \\
स्टेशनो पर पानी पिलाते हैं तो अछूत
हाँ पनघटों पे थोड़ा बहुत भेदभाव है |
कल रात इनको देखा था उर्दू लिबास में
कोई ये कह रहा था की अगला चुनाव है ||
मेरा धर्म है मोहब्बत मेरी नीत है भलाई /
मेरी मंज़िल एकता है, नहीं राह है पराई ||
कभी बन गया में हिन्दू, कभी बन गया मुसलमान
न हीं बन सका मैं इंसान, मुझे मौत क्यों ना आयी /
इंसान हो तो प्यार में ढलना तो सीख लो
गिरने से पहले उठो संभलना तो सीख लो |
तुम बाद में बसाना किसी चंद्रलोक को
धरती में पहले चलना तो सीख लो //
2..
हर एक बात पे कहते हो तुम तू क्या है / तुम्ही कहो की ये अंदाज़े गुफ्तगूं क्या है //
रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल / जो आँख से ही ना टपका वो लहू क्या है //
https://www.youtube.com/watch?v=Ybkz3RnP268
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन /
दिल को खुछ रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है /
https://www.youtube.com/watch?v=x6CBCU6nRjg
https://www.youtube.com/watch?v=IZMJ6A4C6Ss
खबर थी गर्म शहर में की ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े /
देखने हम भी गए लेकिन वो माज़रा ना हुआ /
3. Imran Pratapgarhi
Imran openly spoke against Note Bandi / ATM / Modi / Name changing of cities / मेरा चौकिदार चोर है /(19:02). Listen after (28;00) also.
https://www.youtube.com/watch?v=3-V6EgkCm_M Even if it was in January 2019, still Modi won with majority in 2019 elections. This is what the democracy is.
Imran Pratapgarhi
https://www.facebook.com/Vedicteacher/posts/4621797934566514कह रहां हूँ मैं ये नाप कर तोल कर अपने ईमान की आवाज़ पर बोल कर
खवाब घर वापिसी का जो बुनते हैं वो
मेरी धड़कन सुने कान को खोल कर
हम मोहम्मद के इस्लाम की शान पर
कल भी कुर्बान थे अब भी कुर्बान हैं
हम मुसलमान हैं हम मुसलमान हैं
मेरे भारत तेरी आन हैं शान है
तेरी सरहदों के निगेहमाँ हैं/
आप बाई डिफ़ॉल्ट से हिन्दोस्तानी हैं हम बाई चॉइस हिन्दोस्तानी हैं /
हम तो पारस अरब से भी आये नहीं
तेरे अपने हैं हम तो पराये नहीं
इस तरह से सितम हम पर ढाये गए /
मुद्दतें हो गयी मुस्कराये नहीं /
मेरे पुरखों की जागीरदारी है
ये मत समज़ना की हम मेहरबान हैं
हम मुसलमान हैं हम मुसलमान हैं //
तेरे अपने हैं हम पराये नहीं / हम मुसलमान हैं हम मुसलमान हैं //
Hashimi Ferozabadi
देओबंदी शिया सुन्नी बरेलवी में बट गए
अपने अपने मक़सदों से इसीलिए हट गए /
अपनी अपनी मस्जिदें हैं अपने अपने पीर हैं
तरकशों मैं जंग खाये सारे टूटे तीर हैं /
सैंकड़ो खुदा हैं जिनके वो एक जगह खड़े हैं
एक खुदा वाले सारे बिखरे हुए पड़े हैं /
कौम को मैं आइना दिखाने आज आया हूँ
सोये हुए शेरों को जगाने मैं आया हूँ
https://www.youtube.com/watch?v=oaLPm0NajIg
5.
Manzil ka janun rukne nahi deta, kehti hai thakan ruk kyon nahin jaate
8.
Rahat Indori (1 January 1950 - 11 August 2020)
ऐसी सर्दी है की सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो प्रदेश में वो किस से रजाई मांगे /
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे //
अपने मुंसिफ की जिहानत पे हों कुर्बान
जो क़त्ल भी हम हों और हमसे ही सफाई मांगे //
शहरों में तो बारूदों का मौसम है / गाँव चलो ये अमरूदों का मौसम है /
मेरी साँसों में समाया भी बहुत लगता है / वो ही शक्श पराया भी बहुत लगता है //
फैसला जो कुछ भी हो मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इशक हो भरपूर होना चाहिए (11:49 to 29:00)
8.2
मैंने शाहों की मोहब्बत का भ्रम तोड़ दिया
मेरे कमरे मैं भी एक ताज महल रखा है //
आग के पास कभी मोम को ला कर देखूं
हो इजाजत तो तुझे हाथ लगा कर देखूं //
आज से मैंने तेरा नाम गजल रखा है
8.3
मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दोस्तान लिख देना //
सभी का खून है शामिल है यहां की इस मिटटी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ा ही है //(8:41).
9. Shabina Adeeb Kanpuri
ये हकीकत है कोई फ़साना नहीं कद्र ओहदे की है आदमी की नहीं /
जैसे ही लाल बत्ती हटी कार से जितने रिश्ते थे सब अजनबी हो गए //(18;00)
जहाँ हो प्यार वहां कभी गम नहीं होता /
बिछड़ के दोनों को इस बात का यकीन हुआ की दूर रह के भी प्यार कम नहीं होता //
जो अपने हिस्से की रोटी भी बाँट देता है उस आदमी का रिज़्क़ कम नहीं होता //
मेरी उम्मीद मेरा प्यार मेरा आस रहो
तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ (25:00)
खून में डूबा अमन का पैकर देखा है / जख्मी जख्मी एक कबूतर देखा है /
जलती हवेली जलता छप्पर देखा है / हाँ मैंने गुजरात का मंजर देखा है //
नाम मेरा मज़लूम है मैं इक लड़की हूँ / जो देखा है मैंने वो बतलाती हूँ /
घर घर आग लगाई है गद्दारों ने इज्जत लूटी धर्म के ठेकेदारों ने धरती पे शैतान का लश्कर देखा है /
हाँ मैंने गुजरात का मंजर देखा है //(1:00 to 4:00)
10. Tahir Faraz Rampuri
Tahir Faraz speaks about Shayeri.
झूट इसने इस कदर बोला की सच्चा हो गया /
इतना उजला था लिबास लाज उस तक़रीर का
लोग थोड़ी देर को समझे उजाला हो गया //
आ गले लग जा मुबारक हो तुझे मेरे रकीब
कल तलक जो मेरा था वो तेरा हो गया //(3:45)
याद करते नहीं जिस दिन तुझे हम, अपनी नजरों से उतर जाते हैं //
वक़्त से पूछ रहा है कोई, जख्म क्या वाकई भर जाते हैं // (18:42)
जिंदगी तेरे तआक्कुब ((पीछा करना) में हम, इतना चलते हैं की मर जाते हैं // (20:13)
बहुत खूबसूरत हो तुम (26:00)
10.5 ताहिर फ़राज़
जमीं पे रहके भी जन्नत निशां में रहता हूँ, मुझे है फक्र मैं हिन्दोस्तां में रहता हूँ //
मैं चाहता हूँ कि कश्मीर मेरा अंग रहे , मेरी दुआ है कि इंसानियत भी संग रहे //
बनती बिगड़ती जेहन में यूँ तदबीरें आती हैं, जैसे उड़ते बादल में तस्वीरें आती हैं //
सारे मनसिब सारे तमगे उनके हिस्से में, अपनी झोली में खाली तकरीरें आती हैं //
जिनके कांधों पर होता है बोझ जमानों का, उनके पैरों में अक्सर जंजीरें आती हैं //
ख्वाब ना देखें हमको मिटाने का उनसे कह दो / अक्सर ख्वाबों की उलटी ताबीरें आती हैं //
गीत
दिन वो भी किया थे जब हम मिलके देश में रहते थे अपनी मिटटी की खुशबु के प्रवेश में रहते थे //
दादी की पहली रोटी जो गाये के नाम होती, अंतिम रोटी उनकी खाता था गाँव का मोती /
दिन वो भी क्या थे जब हम मिलके देश में रहते थे //---
बाँध रखा है जहन में जो ख्याल, उसमे तरमीन क्यों नहीं करते
बेसबब उलझनों में रहते हो मुझको तस्लीम क्यों नहीं करते //
वो समझते हैं की हालात से डर जाएंगे, और क्या होगा यहि होगा की मर जाएंगे/
हम पे तो सारे जमाने के खुलें हैं रस्ते आप ये सोचिये की बिखरे तो कहां जाएंगे //
11.
मैं बेटी हूँ मैं मां को अपने घर पे ले आयी /
12 Collections by Jaipal Singh Datta
चंद कलियाँ निशात की चुनकर, मुद्दते मेह्वेयास रहता हूँ/
तुमसे मिलना खुशी की बात सही, तुमसे मिलकर उदास रहता हूँ // When I think of past, I remain in dreams with you. It is nice to meet you, but I feel sad once you leave me. My German Family, who accepted me as their Son and friend.
सरे महफ़िल करम इतना की हुसने यार हो जाए
जहाँ डट जाए दीवाना वहीँ दीदार हो जाए // २
एक दिन बैठे बिठाये ये जणू मुझको हुआ
अपने दर से जा के उनके दर पर जा खड़ा
कह रहा था एक बीमार उनके क़दमों पर पड़ा
आये हो पूछने के लिए अब मरीज़ को हा हा अब मरीज को
लबरेज़ जब की उम्र का पैमाना हो गया / लबरेज़ जब की उम्र का पैमाना हो गया//
सरे महफ़िल करम इतना की हुसने यार हो जाए
जहाँ डट जाए दीवाना वहीँ दीदार हो जाए // २
ये मोहन नगर है सबसे बड़े साकी का मय खाना अहा साकी का मयखाना
यंहा पर रिन्द आ कर के सुबह से श्याम हो जाए /
सरे महफ़िल करम इतना की हुसने यार हो जाए
जहाँ डट जाए दीवाना वहीँ दीदार हो जाए // २
Jaipal Singh Datta - recollecting some words from Shaayeri of 1961 Sung by uncle Mohinder Sain - Chief Engineer of Amritsar Sugar Factory Rohana Kalan Muzaffar Nagar in a festival of Industrial companies of Uttar Pradesh, India.
13. Hum Dekhenge - Faiz Ahmed Faiz
Iqbal Bano, the subcontinent's beloved ghazal singer, born in India and trained in the Dilli Gharana by the legendary Ustad Chand Khan, . In the hearts of all who knew and loved her music is the memory of that day: when, in protest against the jailing of the subcontinent's foremost left poet Faiz Ahmad Faiz by Pakistan's dictator General Zia-ul Haq, she sang Faiz's immortal song "Hum Dekhenge" (We shall witness) at a Lahore stadium full of 50,000 people, wearing a black sari in defiance of Zia's ban on the sari. As her liquid voice reached the crescendo -- declaring "Certainly we, too, shall witness that day ... When these high mountains/Of tyranny and oppression turn to fluff and evaporate/And we oppressed/Beneath our feet will this earth shiver, shake and beat/And heads of rulers will be struck/With crackling lightening and thunder roars/When crowns will be flung in the air — and thrones will be overturned ...," people joined with slogans of "Inquilab Zindabad" (Long live revolution!)
"Hum dekhenge
Lazim hai ke hum bhi dekhenge
Woh din ke jis ka waada hai
Jo loh-e-azl pe likha hai
Hum dekhenge
Jab zulm-o-sitam ke koh-e-garaan
Rui ki tarah ud jayenge
Hum mehkumoon ke paun tale
Yeh dharti dhad dhad dhadkagi
Aur ehl-e-hukum ke sar upar
Jab bijli kad kad kadkegi
Hum dekhenge
Jab arz-e-khuda ke Kabe se
Sab but uthwaye jayenge
Hum ahl-e-safa mardood-e-haram
Masnad pe bithaye jayenge
Sab taaj uchale jayenge
Sab takht giraye jayenga
Bas naam rahega Allah ka
Jo ghayab bhi hai hazir bhi
Jo nazir bhi hai manzar bhi
Uthega nalhaq ka naara
Jomain bhi hoon aur tum bhi ho
Aur raaj karegi khalq-e-khuda
Jo main bhi hoon aur tum bhi ho
Hum dekhenge
Lazim hai ke hum bhi dekhenge
Hum dekhenge"
Hum dekhenge Hum bhi Dekhenge Laazim hai hum bhi dekhenge jiska waada hai by Iqbal Bano
Jab Julmo sitam ke kohe geran Rui ki terah ud jaayenge --- Faiz Ahmed Faiz poet wrote against Jia ul Haq but later sung in IIT Kanpur students
"As debate rages over Faiz Ahmed Faiz's noted poem 'Hum Dekhenge' being anti-Hindu, IIT-Kanpur has formed a committee to inquire into a complaint against the recitation of the poem 'Hum Dekhenge' on campus by its students during anti-CAA stir. The poem was epitomized by singer Iqbal Bano in defiance of General Zia's saree ban. Since then, the poem has been sung as a song of dissent. So is the poem anti Hindu or is this a politically motivated controversy?"
14 I wrote in Datta News blog about Urdu Shayeri